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बीए सेमेस्टर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2636
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास

प्रश्न- उत्तर वैदिक काल में शासन प्रबन्ध का वर्णन कीजिए।

 

अथवा
वैदिक कालीन राजनीतिक संस्थाओं पर एक निबन्ध लिखिए।

उत्तर-

ऋग्वैदिक कालीन राजनीतिक संगठन की सबसे छोटी ईकाई कुल या परिवार थी, जिसका प्रमुख कुलप होता था। कई कुलों को मिलाकर ग्राम बनता था। जिसका प्रमुख ग्रामणी होता था। गाँवों के समूह को विशः कहते थे, जिसका शीर्ष अधिकारी विशपति होता था। विशों के समूह को जन कहते थे जिसका प्रमुख राजा होता था। जन ही ऋग्वैदिक कालीन राजनीतिक संगठन की सबसे बड़ी ईकाई होती थी।

युद्ध में जन का नेता राजा होता था। राजत्व का आरम्भ, युद्ध में ही हुआ, ऐसा प्रमाण वैदिक वाङ्मय में मिलता है। 'एतरेय ब्राह्मण' में इसका संकेत इस प्रकार है- 'देव और असुर लड़ते थे'। देवों को असुरों ने हरा दिया। देवों ने कहा हम राजा रहित होने से हार गए, हम सभी राजा कर ले। सब सहमत हो गए और राजा कर लिया।' राजा जन या विशः का राजा होता था न कि भूमि का, राजत्व एक प्रकार का नेतृत्व था, और कुछ नहीं। वह पूरी तरह नियन्त्रित था। स्वेच्छाचारी होने का उसे अवसर ही नहीं था। विशः या प्रजा राजा का वरण करती थी। वरण होने से उसका राज्याभिषेक होता था और वह राज पद का अधिकारी हो जाता था। वरण प्रजा और राजा के बीच एक प्रकार का समझौता था। प्रतिज्ञा तोड़ने से विशः को पदच्युत करने का भी अधिकार था।

धीरे-धीरे राजा कुलागत होने लगा। ऋग्वेद में एक ही कुल के क्रमागत राजाओं के अनेक उल्लेख हैं। युद्ध के दिनों में राजा जन का नेतृत्व और उसकी रक्षा करता था। बदले में प्रजा उसका अनुशासन मानती और उपहारों से उसे समाद्वत करती थी। शान्ति के दिनों में वह न्याय प्रदान करता था और यज्ञ तथा अन्यान्य अनुष्ठानों के द्वारा जन की समृद्धि के लिए भी प्रयत्न करता था। राजा के सहायकों के रूप में पुरोहित। सेनानी और ग्रामणी थे। विदथ सभा और समिति के द्वारा राजा पर नियन्त्रण भी रखा जाता था। राजा स्वेच्छा से कुछ करने की स्थिति में उस समय नहीं था। वह प्रतिद्वन्द्वी - रहित और प्रतिद्वन्द्वियों का नाश करने वाला समझा जाता था। राजकीय सत्ता परम्परागत थी। ऋकसंहिता में पुरु और त्रित्सुः राजवंशों के नाम संकलित हैं। किन्तु राजसत्ता के स्थायित्व के लिए जनता की स्वीकृति आवश्यक समझी जाती थी। राजा की सहायता के लिए गुप्तचर भी होते थे। वह दूतों की नियुक्ति भी कराता था। वंशानुगत राज्याधिकार तभी वैध समझा जाता था, जब जनता उसका अनुमोदन कर दे। जनता के हित की रक्षा करना ही राजा का सर्वश्रेष्ठ कर्तव्य था। राजपद गौरवशाली समझा जाता था। पूर्व वैदिक काल में ही राजनीतिक एकता का प्रयास शुरू हो चुका था और छोटे-छोटे राज्यों को मिलाकर बड़े राज्यों के निर्माण का प्रयास भी। सुदास ने अपने निकटवर्ती राजाओं को परास्त कर अपना राज्य विस्तार किया था। ऋग्वेद में "विश्वस्य भुवनस्य राजा" का भी उल्लेख मिलता है। राजा के अधिकार में भी क्रमशः वृद्धि होने के प्रमाण मिलते हैं।

इस काल में पुरोहितों का सम्मान बढ़ने लगा था और ऐसा ज्ञात होता है कि कालान्तर में उन्हीं लोगों से राजमन्त्री पद का विकास हुआ। पुरोहित राजा को राजनीतिक विषयों पर परामर्श देते थे और उसकी विजय, कुशलता और दीर्घायु के लिए प्रार्थना भी करते थे। सामूहिक कल्याण के लिए विभिन्न यज्ञों का जो आयोजन होता था, उसमें भी पुरोहित लोग सक्रिय भाग लेते थे। युद्धकाल में वे राजा के लिए विजय की कामना करते थे। पुरोहितों का पद बड़ा ही महत्त्वपूर्ण और उत्तरदायित्वपूर्ण था। पुरोहित के साथ-ही-साथ वे राज्यमन्त्री, मुख्य सलाहकार, पथप्रदर्शक और योद्धा भी थे। सेनानी या सेनापति सेना के प्रधान होते थे और युद्ध में सेना का संचालन करते थे। इन मुख्य सहायकों के अतिरिक्त ऋग्वेद में ग्रामणी, सूत, रथकार और कम्मर के भी नाम मिलते हैं। इन्हें स्त्री कहा गया है। ये लोग राज्याभिषेक के समय उपस्थित रहते थे। ग्रामणी एक ओर राजा का पदाधिकारी था और दूसरी ओर जनता का प्रतिनिधि भी गाँव में शान्ति बनाए रखना और राजा तक गाँव की दिक्कतों को पहुँचाना ग्रामणी का मुख्य काम था। अभिषेक के पूर्व राजा ग्रामणी, सूत, रथकार, कर्म्मार की पूजा करते थे। इससे तत्कालीन लोकमत की प्रधानता का प्रमाण मिलता है। पुरप, स्पश और दूत के भी उल्लेख मिलते हैं। 'पुरप' दुर्ग के प्रधान होते थे और इनका काम सैनिक ढंग का होता था। 'स्पर्श' गुप्तचर होते थे जो जनता की गतिविधि पर दृष्टि रखते थे और राजा को राज्य की स्थिति से अवगत कराते थे। 'दूत' के राजनीतिक कार्य तो महत्त्वपूर्ण थे ही, क्योंकि वे ही तरह-तरह के प्रस्ताव लेकर विभिन्न राज्यों में जाते थे। ये लोग राजा के प्रति ही उत्तरदायी थे, क्योंकि राजा सम्पूर्ण सत्ता का केन्द्रबिन्दु था। वह एक ही साथ सर्वोच्च पदाधिकारी, सेनापति और न्यायाधीश भी था। राजा की ओर से ही सबको दण्ड दिया जाता था। इतना होने के बावजूद उसे निरंकुश नहीं कहा जा सकता था। युद्धों और दस्युओं के साथ संघर्ष के फलस्वरूप धीरे इधीरे एक नेता के नेतृत्व में संगठन की प्रवृत्ति उदित हुई और जनपद राज्यों का सूत्रपात्र हुआ।

राजनीतिक तथा सामाजिक संगठन का आधार पितृमूलक परिवार था। बड़ी इकाइयों के नाम ही ग्राम, विश और जन थे, परन्तु इनके सम्बन्ध में ठीक-ठाक विवरण स्पष्ट रूप से नहीं मिलता। जनों के समूह की चर्चा यदा-कदा मिलती है। जन और जनपद की रक्षा करना ही राजा का सर्वप्रथम कर्त्तव्य था। बाहरी शत्रुओं इसे वह लड़ता था। आन्तरिक सुरक्षा कायम रखना भी उसी का काम था। पुरोहित लोग धार्मिक अनुष्ठान के अतिरिक्त लोगों से 'बलि' भी ग्रहण करते थे। युद्ध में पदाति (पत्ति) और रथ से लड़ने वाले योद्धा भी होते थे। युद्ध में सेना कवच, धातु, शिरस्राव और हस्तरक्षक पहनती थी। भाले, तलवार और कुल्हाड़ी का भी उल्लेख मिलता है। वाद्ययन्त्र के साथ-ही-साथ युद्ध में पताका का व्यवहार भी होता था। सेना की इकाइयों के नाम शर्ध, व्रात और गण थे।

इस समय राजा की निरंकुशता पर नियन्त्रण स्थापित करने वाली संस्थाओं विदध, सभा, तथा समिति आदि की स्थापना की गई थी। सभा श्रेष्ठ जनों की सभा थी। इसे सामाजिक संगठन का भी केन्द्र समझा जाता था। सभा समूचे जन की परिषद नहीं थी। सार्वजनिक बातों का फैसला सभा में होता था और न्याय- शासन से इसका घनिष्ठ सम्बन्ध था। स्त्रियों को सभा में सम्मिलित नहीं होने दिया जाता था। अति प्राचीन काल में जो संस्था वैदिक आर्यों की थी, उसे ही हम विदथ के नाम से जानते हैं। विदथ को जनसभा कहा गया है। ऐसा ज्ञात होता है कि प्रारम्भ में सब सजातों के जमाव का ही विदथ था और उसी विदथ से 'समिति' और सभा निकली। सभा और समिति राजनीतिक संस्थाएँ थीं। कीथ के अनुसार, 'समिति' वह संस्था थी जो जन के कार्य और आवश्यकताएँ सम्पादित करती थीं और 'सभा' अधिवेशन का स्थल थी, जहाँ अन्य सामाजिक कार्य सम्पन्न होते थे।

'समिति' समूची विशः की संस्था थी और राज्य की बागडोर उसी के हाथ रहती थी। उसकी नाराजगी राजा के लिए विपत्ति समझी जाती थी। राजा का चुनाव, पदच्युति और पुनर्वरण समिति ही करती थी प्रत्येक सदस्य को अपना मत प्रकट करने की छूट थी। उसमें ग्रामीण सूत, कर्म्मा और रथकार भी सम्मिलित होते थे। राज्य की नीति का निर्धारण वहीं से होता था। ग्राम ही समिति के आधार थे। समिति के सदस्य कौन होते थे, यह कहना कठिन है। सम्भवतः प्रत्येक जन का और ग्रामों का भी प्रतिनिधित्व उसमें होता था। समिति एक केन्द्रीय राजनीतिक संस्था थी।

'समिति' और 'सभा' में क्या भेद था, यह बताना कठिन है। ये दोनों दो पृथक् संस्थाएँ थीं और समिति सभा से ऊँची संस्था थी। 'सभा' एक चुनी हुई छोटी-सी संस्था थी। वह राष्ट्र के न्यायालय का कार्य करती थी। उसमें केवल वृद्ध लोग ही नहीं, प्रत्युत् जवान लोग भी सम्मिलित होते थे। उसमें विनोद की बातें भी होती थीं और तब वह गोष्ठी का काम देती थी। गौओं की चर्चा सभाओं का एक खास लक्षण थी। गोष्ठियों में जुआ भी चलता था।

'समिति' और 'सभा' के वास्तविक अर्थ पर बड़ा मतभेद है। हिलबैंड का विचार है कि समिति संस्था थी और सभा उसका अधिवेशन स्थल। परन्तु, यह मत अमान्य है, क्योंकि अथर्ववेद में दोनों को पृथक् संस्थाओं के रूप में माना गया है। अथर्ववेद में कहा गया है, "सभा च मा समिति श्रावंता प्रजापते दुहितरौ संविदाने।" प्रजापति की दो पुत्रियों के रूप में दोनों का वर्णन मिलता है। लुडविग के अनुसार सभा उच्चतर भवन है और समिति निम्नतर भवन। जिमर ने सभा को ग्राम-संस्था और समिति को केन्द्रीय संस्था के रूप में स्वीकार किया है। अथर्ववेद में, सभा, समिति और परिषद् का उल्लेख मिलता है। सभा ग्रामवासियों के मनोरंजन का भी केन्द्र होती थी। सभासदों का उल्लेख भी यत्र-तत्र मिलता है। इससे यह अन्दाज लगाया जा सकता है कि गाँव के धनी-मनी व्यक्तियों का बोलबाला सभा में रहता होगा। समिति के सभापति को ईशान नाम से सम्बोधित किया गया था। सामूहिकता की भावना सर्वत्र व्याप्त थी।

ऋग्वैदिक काल की विधि तथा न्याय व्यवस्था के विषय में निश्चित जानकारी नहीं है। सम्भवतः राजा पुरोहितों की सहायता से न्यायिक कार्य करता था। चोरी, बेईमानी, धोखाधड़ी आदि अपराधों के उदाहरण मिलते हैं। अपराध के लिए लोगों को शारीरिक दण्ड तथा जुर्माने दिये जाते थे। मृत्युदण्ड की प्रथा नहीं थी।

राज्यों के स्वरूप - संगठित राज्यों के अतिरिक्त पूर्व वैदिक काल में और कई प्रकार के राज्यों का वर्णन मिलता है। कुछ तो अराजक राज्य थे। कहीं बिना राजा के समिति ही राज्य करती थी। कुछ अराजक जनों में यादवों में वीतिहोत्र का उल्लेख मिलता है। ये लोग प्रसिद्ध अराजक जन थे। सम्राट् का भी उल्लेख मिलता है। फिर सार्वभौम राजा का आदर्श चला। चक्रवर्ती राज्यों का भी उल्लेख मिलता है। इन सभी राज्यों के सम्बन्ध में ब्यौरेवार वर्णन नहीं मिलता, अतः स्पष्ट रूप से कुछ कहना सम्भव नहीं है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास को समझने हेतु उपयोगी स्रोतों का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- प्राचीन भारत के इतिहास को जानने में विदेशी यात्रियों / लेखकों के विवरण की क्या भूमिका है? स्पष्ट कीजिए।
  3. प्रश्न- पुरातत्व के विषय में बताइए। पुरातत्व के अन्य उप-विषयों व उसके उद्देश्य व सिद्धान्तों से अवगत कराइये।
  4. प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  5. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के विषय में आप क्या जानते हैं?
  6. प्रश्न- भास की कृति "स्वप्नवासवदत्ता" पर एक लेख लिखिए।
  7. प्रश्न- 'फाह्यान पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
  8. प्रश्न- दारा प्रथम तथा उसके तीन महत्वपूर्ण अभिलेख के विषय में बताइए।
  9. प्रश्न- आपके विषय का पूरा नाम क्या है? आपके इस प्रश्नपत्र का क्या नाम है?
  10. प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान के अध्ययन की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  11. प्रश्न- शिलालेख, पुरातन के अध्ययन में किस प्रकार सहायक होते हैं?
  12. प्रश्न- न्यूमिजमाटिक्स की उपयोगिता को बताइए।
  13. प्रश्न- पुरातत्व स्मारक के महत्वपूर्ण कार्यों पर प्रकाश डालिए
  14. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता के विषय में आप क्या समझते हैं?
  15. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता के सामाजिक व्यवस्था व आर्थिक जीवन का वर्णन कीजिए।
  16. प्रश्न- सिन्धु नदी घाटी के समाज के धार्मिक व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  17. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता की राजनीतिक व्यवस्था एवं कला का विस्तार पूर्वक वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के नामकरण और उसके भौगोलिक विस्तार की विवेचना कीजिए।
  19. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता की नगर योजना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- हड़प्पा सभ्यता के नगरों के नगर- विन्यास पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  21. प्रश्न- हड़प्पा संस्कृति की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  22. प्रश्न- सिन्धु घाटी के लोगों की शारीरिक विशेषताओं का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।
  23. प्रश्न- पाषाण प्रौद्योगिकी पर टिप्पणी लिखिए।
  24. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के सामाजिक संगठन पर टिप्पणी कीजिए।
  25. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के कला और धर्म पर टिप्पणी कीजिए।
  26. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के व्यापार का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  27. प्रश्न- सिंधु सभ्यता की लिपि पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  28. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता में शिवोपासना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  29. प्रश्न- सैन्धव धर्म में स्वस्तिक पूजा के विषय में बताइये।
  30. प्रश्न- ऋग्वैदिक अथवा पूर्व वैदिक काल की सभ्यता और संस्कृति के बारे में आप क्या जानते हैं?
  31. प्रश्न- विवाह संस्कार से सम्पादित कृतियों का वर्णन कीजिए तथा महत्व की व्याख्या कीजिए।
  32. प्रश्न- वैदिक काल के प्रमुख देवताओं का परिचय दीजिए।
  33. प्रश्न- ऋग्वेद में सोम देवता का महत्व बताइये।
  34. प्रश्न- वैदिक संस्कृति में इन्द्र के बारे में बताइये।
  35. प्रश्न- वेदों में संध्या एवं ऊषा के विषय में बताइये।
  36. प्रश्न- प्राचीन भारत में जल की पूजा के विषय में बताइये।
  37. प्रश्न- वरुण देवता का महत्व बताइए।
  38. प्रश्न- वैदिक काल में यज्ञ का महत्व बताइए।
  39. प्रश्न- पंच महायज्ञ' पर टिप्पणी लिखिए।
  40. प्रश्न- वैदिक देवता द्यौस और वरुण पर टिप्पणी लिखिए।
  41. प्रश्न- वैदिक यज्ञों की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- वैदिक देवता इन्द्र के विषय में लिखिए।
  43. प्रश्न- वैदिक यज्ञों के सम्पादन में अग्नि के महत्त्व को व्याख्यायित कीजिए।
  44. प्रश्न- उत्तरवैदिक कालीन धार्मिक विश्वासों एवं कृत्यों के विषय में आप क्या जानते हैं?
  45. प्रश्न- वैदिक काल में प्रकृति पूजा पर एक टिप्पणी लिखिए।
  46. प्रश्न- वैदिक संस्कृति की विशेषताएँ बताइये।
  47. प्रश्न- अश्वमेध पर एक टिप्पणी लिखिए।
  48. प्रश्न- आर्यों के आदिस्थान से सम्बन्धित विभिन्न मतों की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए।
  49. प्रश्न- ऋग्वैदिक काल में आर्यों के भौगोलिक ज्ञान का विवरण दीजिए।
  50. प्रश्न- आर्य कौन थे? उनके मूल निवास स्थान सम्बन्धी मतों की समीक्षा कीजिए।
  51. प्रश्न- वैदिक साहित्य से आपका क्या अभिप्राय है? इसके प्रमुख अंगों की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  52. प्रश्न- आर्य परम्पराओं एवं आर्यों के स्थानान्तरण को समझाइये।
  53. प्रश्न- वैदिक कालीन धार्मिक व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
  54. प्रश्न- ऋत की अवधारणा का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  55. प्रश्न- वैदिक देवताओं पर एक विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  56. प्रश्न- ऋग्वैदिक धर्म और देवताओं के विषय में लिखिए।
  57. प्रश्न- 'वेदांग' से आप क्या समझते हैं? इसके महत्व की विवेचना कीजिए।
  58. प्रश्न- वैदिक कालीन समाज पर प्रकाश डालिए।
  59. प्रश्न- उत्तर वैदिककालीन समाज में हुए परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए।
  60. प्रश्न- उत्तर वैदिक काल में शासन प्रबन्ध का वर्णन कीजिए।
  61. प्रश्न- उत्तर वैदिक काल के शासन प्रबन्ध की रूपरेखा पर प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- वैदिक कालीन आर्थिक जीवन का विवरण दीजिए।
  63. प्रश्न- वैदिक कालीन व्यापार वाणिज्य पर एक निबंध लिखिए।
  64. प्रश्न- वैदिक कालीन लोगों के कृषि जीवन का विवरण दीजिए।
  65. प्रश्न- वैदिक कालीन कृषि व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- ऋग्वैदिक काल के पशुपालन पर टिप्पणी लिखिए।
  67. प्रश्न- वैदिक आर्यों के संगठित क्रियाकलापों की विवेचना कीजिए।
  68. प्रश्न- आर्य की अवधारणा बताइए।
  69. प्रश्न- आर्य कौन थे? वे कब और कहाँ से भारत आए?
  70. प्रश्न- भारतीय संस्कृति में वेदों का महत्त्व बताइए।
  71. प्रश्न- यजुर्वेद पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  72. प्रश्न- ऋग्वेद पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  73. प्रश्न- वैदिक साहित्य में अरण्यकों के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
  74. प्रश्न- आर्य एवं डेन्यूब नदी पर टिप्पणी लिखिये।
  75. प्रश्न- क्या आर्य ध्रुवों के निवासी थे?
  76. प्रश्न- "आर्यों का मूल निवास स्थान मध्य एशिया था।" विवेचना कीजिए।
  77. प्रश्न- संहिता ग्रन्थ से आप क्या समझते हैं?
  78. प्रश्न- ऋग्वैदिक आर्यों के धार्मिक विश्वासों के बारे में आप क्या जानते हैं?
  79. प्रश्न- पणि से आपका क्या अभिप्राय है?
  80. प्रश्न- वैदिक कालीन कृषि पर टिप्पणी लिखिए।
  81. प्रश्न- ऋग्वैदिक कालीन उद्योग-धन्धों पर टिप्पणी लिखिए।
  82. प्रश्न- वैदिक काल में सिंचाई के साधनों एवं उपायों पर एक टिप्पणी लिखिए।
  83. प्रश्न- क्या वैदिक काल में समुद्री व्यापार होता था?
  84. प्रश्न- उत्तर वैदिक कालीन कृषि व्यवस्था पर टिप्पणी लिखिए।
  85. प्रश्न- उत्तर वैदिक काल में प्रचलित उद्योग-धन्धों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए?
  86. प्रश्न- शतमान पर एक टिप्पणी लिखिए।
  87. प्रश्न- ऋग्वैदिक कालीन व्यापार वाणिज्य की विवेचना कीजिए।
  88. प्रश्न- भारत में लोहे की प्राचीनता पर प्रकाश डालिए।
  89. प्रश्न- ऋग्वैदिक आर्थिक जीवन पर टिप्पणी लिखिए।
  90. प्रश्न- वैदिककाल में लोहे के उपयोग की विवेचना कीजिए।
  91. प्रश्न- नौकायन पर टिप्पणी लिखिए।
  92. प्रश्न- सिन्धु घाटी की सभ्यता के विशिष्ट तत्वों की विवेचना कीजिए।
  93. प्रश्न- सिन्धु घाटी के लोग कौन थे? उनकी सभ्यता का संस्थापन एवं विनाश कैसे.हुआ?
  94. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता की आर्थिक एवं धार्मिक दशा का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- वैदिक काल की आर्यों की सभ्यता के बारे में आप क्या जानते हैं?
  96. प्रश्न- वैदिक व सैंधव सभ्यता की समानताओं और असमानताओं का विश्लेषण कीजिए।
  97. प्रश्न- वैदिक कालीन सभा और समिति के विषय में आप क्या जानते हैं?
  98. प्रश्न- वैदिक काल में स्त्रियों की स्थिति का वर्णन कीजिए।
  99. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के कालक्रम का निर्धारण कीजिए।
  100. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के विस्तार की विवेचना कीजिए।
  101. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता का बाह्य जगत के साथ संपर्कों की समीक्षा कीजिए।
  102. प्रश्न- हड़प्पा से प्राप्त पुरातत्वों का वर्णन कीजिए।
  103. प्रश्न- हड़प्पा कालीन सभ्यता में मूर्तिकला के विकास का वर्णन कीजिए।
  104. प्रश्न- संस्कृति एवं सभ्यता में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  105. प्रश्न- प्राग्हड़प्पा और हड़प्पा काल का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  106. प्रश्न- प्राचीन काल के सामाजिक संगठन को किस प्रकार निर्धारित किया गया व क्यों?
  107. प्रश्न- जाति प्रथा की उत्पत्ति एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  108. प्रश्न- वर्णाश्रम धर्म से आप क्या समझते हैं? इसकी मुख्य विशेषताएं बताइये।
  109. प्रश्न- संस्कार शब्द से आप क्या समझते हैं? उसका अर्थ एवं परिभाषा लिखते हुए संस्कारों का विस्तार तथा उनकी संख्या लिखिए।
  110. प्रश्न- प्राचीन भारतीय समाज में संस्कारों के प्रयोजन पर अपने विचार संक्षेप में लिखिए।
  111. प्रश्न- प्राचीन भारत में विवाह के प्रकारों को बताइये।
  112. प्रश्न- प्राचीन भारतीय समाज में नारी की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
  113. प्रश्न- वैष्णव धर्म के उद्गम के विषय में आप क्या जानते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  114. प्रश्न- महाकाव्यकालीन स्त्रियों की दशा पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  115. प्रश्न- पुरातत्व अध्ययन के स्रोतों को बताइए।
  116. प्रश्न- पुरातत्व साक्ष्य के विभिन्न स्रोतों पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  117. प्रश्न- पुरातत्वविद् की विशेषताओं से अवगत कराइये।
  118. प्रश्न- पुरातत्व के विषय में बताइए। पुरातत्व के अन्य उप-विषयों व उसके उद्देश्य व सिद्धान्तों से अवगत कराइये।
  119. प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  120. प्रश्न- पुरातात्विक स्रोतों से प्राप्त जानकारी के लाभों से अवगत कराइये।
  121. प्रश्न- पुरातत्व को जानने व खोजने में प्राचीन पुस्तकों के योगदान को बताइए।
  122. प्रश्न- विदेशी (लेखक) यात्रियों के द्वारा प्राप्त पुरातत्व के स्रोतों का विवरण दीजिए।
  123. प्रश्न- पुरातत्व स्रोत में स्मारकों की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
  124. प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान के अध्ययन की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  125. प्रश्न- शिलालेख, पुरातन के अध्ययन में किस प्रकार सहायक होते हैं?
  126. प्रश्न- न्यूमिजमाटिक्स की उपयोगिता को बताइए।
  127. प्रश्न- पुरातत्व स्मारक के महत्वपूर्ण कार्यों पर प्रकाश डालिए।
  128. प्रश्न- "सभ्यता का पालना" व "सभ्यता का उदय" से क्या तात्पर्य है?
  129. प्रश्न- विश्व में नदी घाटी सभ्यता के विकास पर प्रकाश डालिए।
  130. प्रश्न- चीनी सभ्यता के विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  131. प्रश्न- जियाहू एवं उबैद काल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  132. प्रश्न- अकाडिनी साम्राज्य व नॉर्ट चिको सभ्यता के विषय में बताइए।
  133. प्रश्न- मिस्र और नील नदी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  134. प्रश्न- नदी घाटी सभ्यता के विकास को संक्षिप्त रूप से बताइए।
  135. प्रश्न- सभ्यता का प्रसार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  136. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के विस्तार के विषय में बताइए।
  137. प्रश्न- मेसोपोटामिया की सभ्यता पर प्रकाश डालिए।
  138. प्रश्न- सुमेरिया की सभ्यता कहाँ विकसित हुई? इस सभ्यता की सामाजिक संरचना पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डालिए।
  139. प्रश्न- सुमेरियन सभ्यता के भारतवर्ष से सम्पर्क की चर्चा कीजिए।
  140. प्रश्न- सुमेरियन समाज के आर्थिक जीवन के विषय में बताइये। यहाँ की कृषि, उद्योग-धन्धे, व्यापार एवं वाणिज्य की प्रगति का उल्लेख कीजिए।
  141. प्रश्न- सुमेरियन सभ्यता में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  142. प्रश्न- सुमेरियन सभ्यता की लिपि का विकासात्मक परिचय दीजिए।
  143. प्रश्न- सुमेरियन सभ्यता की प्रमुख देनों का मूल्यांकन कीजिए।
  144. प्रश्न- प्राचीन सुमेरिया में राज्य की अर्थव्यवस्था पर किसका अधिकार था?
  145. प्रश्न- बेबीलोनिया की सभ्यता के विषय में आप क्या जानते हैं? इस सभ्यता की सामाजिक.विशिष्टताओं का उल्लेख कीजिए।
  146. प्रश्न- बेबीलोनिया के लोगों की आर्थिक स्थिति का मूल्यांकन कीजिए।
  147. प्रश्न- बेबिलोनियन विधि संहिता की मुख्य धाराओं पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  148. प्रश्न- बेबीलोनिया की स्थापत्य कला पर प्रकाश डालिए।
  149. प्रश्न- बेबिलोनियन सभ्यता की प्रमुख देनों का मूल्यांकन कीजिए।
  150. प्रश्न- असीरियन कौन थे? असीरिया की सामाजिक व्यवस्था का उल्लेख करते हुए बताइये कि यह समाज कितने वर्गों में विभक्त था?
  151. प्रश्न- असीरिया की धार्मिक मान्यताओं को स्पष्ट कीजिए। असीरिया के लोगों ने कला एवं स्थापत्य के क्षेत्र में किस प्रकार प्रगति की? मूल्यांकन कीजिए।
  152. प्रश्न- प्रथम असीरियाई साम्राज्य की स्थापना कब और कैसे हुई?
  153. प्रश्न- "असीरिया की कला में धार्मिक कथावस्तु का अभाव है।' स्पष्ट कीजिए।
  154. प्रश्न- असीरियन सभ्यता के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  155. प्रश्न- प्राचीन मिस्र की सभ्यता के विषय में आप क्या जानते हैं? मिस्र का इतिहास जानने के प्रमुख साधन बताइये।
  156. प्रश्न- प्राचीन मिस्र का समाज कितने वर्गों में विभक्त था? यहाँ की सामाजिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  157. प्रश्न- मिस्र के निवासियों का आर्थिक जीवन किस प्रकार का था? विवेचना कीजिए।
  158. प्रश्न- मिस्रवासियों के धार्मिक जीवन का उल्लेख कीजिए।
  159. प्रश्न- मिस्र का समाज कितने भागों में विभक्त था? स्पष्ट कीजिए।
  160. प्रश्न- मिस्र की सभ्यता के पतन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  161. प्रश्न- चीन की सभ्यता के विषय में आप क्या जानते हैं? इस सभ्यता के इतिहास के प्रमुख साधनों का उल्लेख करते हुए प्रमुख राजवंशों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  162. प्रश्न- प्राचीन चीन की सामाजिक व्यवस्था का उल्लेख कीजिए।
  163. प्रश्न- चीनी सभ्यता के भौगोलिक विस्तार का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  164. प्रश्न- चीन के फाचिया सम्प्रदाय के विषय में बताइये।
  165. प्रश्न- चिन राजवंश की सांस्कृतिक उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।

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